इन ऊँची इमारतों की ईंटे लगाता हूँ, अक्सर तुम्हारे घरों मे भी आता हूँइस शहर के लिए ढेरों कमाता हूँ , तब उसमे से अपना हिस्सा पाता हूँ हक़ तो नहीं इस शहर को अपना कहूँन जाने क्यों भोर से संध्या तक इसे सवारने मे लगाता हूँ अदृश्य ही हूँ शायद कि यूँ भूखा प्यासा [...]
Month: October 2020
ख़ामोशी
ज़ुबान से निकले अलफ़ाज़ों को अक्सर बात कहते हैं कभी हम अपने साथ घटित वाक्यों को, कभी भावनाओं तो कभी कल्पनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रयोग करते हैं कहते भी हैं, सुनते भी हैं, समझ शायद कुछ ही पाते हैं जब दिल और रूह कि भावनाएं ज़हन तक जाती हैं तो होठों से बातें [...]