मैं प्रवासी हूँ ,

इन ऊँची इमारतों की ईंटे लगाता हूँ, अक्सर तुम्हारे घरों मे भी आता हूँइस शहर के लिए ढेरों कमाता हूँ , तब उसमे से अपना हिस्सा पाता हूँ हक़ तो नहीं इस शहर को अपना कहूँन जाने क्यों भोर से संध्या तक इसे सवारने मे लगाता हूँ अदृश्य ही हूँ शायद कि यूँ भूखा प्यासा [...]

ख़ामोशी

ज़ुबान से निकले अलफ़ाज़ों को अक्सर बात कहते हैं कभी हम अपने साथ घटित वाक्यों को, कभी भावनाओं तो कभी कल्पनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रयोग करते हैं कहते भी हैं, सुनते भी हैं, समझ शायद कुछ ही पाते हैं जब दिल और रूह कि भावनाएं ज़हन तक जाती हैं तो होठों से बातें [...]